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खुद को तन्हा सा पाती हूं
ना जाने कहां की यादों में
सिमट सी जाती हूं
बहुत कुछ है कहने को
पर क्या कहूं...किस्से कहूं
ये मै ना समझ पाती हूं
जब खुद से मिलती हूं
खुद को पहचान ना पाती हूं
कौन हूं मै क्या हूं मै
बस सोचती रह जाती हूं
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