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उसे शब्दों में उतारती हूं
कोई ना जनता लेकिन
मै अकेले में रोती हूं
खुश हूं मै सब कुछ पास है
लेकिन फिर भी कमी है
ना जाने क्यों
इन आंखों में नमी है
समझ नहीं आता क्या करू
कोशिश करती बेजोड़
फिर भी वही बापास आ जाती
जहां से करती हूं शुरू
विश्वास है खुद पर
एक दिन होगा नया सबेरा
जहां .. होगी मेरी अपनी एक पहचान
और साथ में होगा विश्वाश तेरा
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