कोरोना का कहर...

बातों का मिजाज बदल रहा है 
हवाओं का रुख भी बदल रहा है 
चारो तरफ खाली पड़ा है शहर 
लगता है लोगो का इरादा बदल रहा है 

बाहर निकलो तो मौत का साया है
कुछ नहीं चल रहा पता
किसने क्या खोया 
और किसने क्या पाया है  

त्योहारों की रौनक चली गई है
ज़िन्दगी की परिभाषा भी बदल गई है
आज जानवर खुला घूम रहा है
और इंसानियत घरों में कैद हो गई है

कोई पैदल ही चला आ रहा है 
तो कोई भुखमरी से मर रहा है 
ना जाने कब होगा ख़तम ये सब 
अब तो इंसान खुली हवा में सांस लेने को तरस रहा है

"डॉक्टर" जिसे कहते सब भगवान है 
इस बीमारी से वह भी मर रहा है 
इंसानों को ही संभलना होगा
इस बीमारी से खुद ही बचना होगा


















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