अनकहे शब्द दिल के

डर रहीं हूं मै , कहीं खुद को खो ना दूं
इतना कुछ कहना चाहती हूं 
लेकिन कहने से पहले कहीं रो ना दूं

चाहती तो हूं कि पास आ जाए वो मेरे
गले लगा के हाथों को पकड़ के
पूछे आंखों में आंखें डाल के 
की " क्या है इस दिल में तेरे?"

और मै कह दूं खुल कर
हर एक बात हर एक गम
जिसकी वजह से रहतीं हैं 
हर पल मेरी आंखें नम

जाना तो चाहती हूं सबसे दूर
फिर भी ना जाने किस बात से हूं मजबूर

रहना चाहती हूं बन कर हर एक गम से अनजान
लेकिन डर लगता है...
कहीं खुद से ही ना खो दूं खुद की पहचान...
 

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