प्यार और ताना

मै किसी भी साध्वी या साधु बाबा के सत्संग में नहीं जाती.. लेकिन  जया किशोरी जी के सत्संग की एक पंक्ति सुनी थी वाहट्स ऐप के एक स्टेटस में की
ससुराल में बार बार एक लाइन सुननी पड़ती है जैसे कि वो लाइन मारना हर सास का कॉपी राईट होता है
 "मां ने कुछ नहीं सिखाया"
 जैसे कि लड़की किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट में थी जहां से सब कुछ सीख के आना चाहीए था.. 

इन शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया । 

शादी से पहले हम सब ( लड़कियां) ये अपनी मां के मुंह से अक्सर सुनते होंगे कि " काम करना सीख ले नहीं तो ससुराल में जाएगी तो सब कहेंगे की " तेरी मां ने नहीं सिखाया" 

 शायद सुनती भी होंगी कुछ ये अपने ससुराल में .. 

तो मुझे लगता है लड़की को ऐसा बोलना सही में गलत है । क्यूंकि वो अपने घर में होती है और उसकी मां उसे हर वो चीज सिखाती है जो वो जानती है और देखती चली आई है। 

कहते है कि " एक बहु कभी बेटी नहीं बन सकती और एक सास कभी मां नहीं बन सकती" 

इस बात के मै खिलाफ हूं। मै नहीं मानती की एक बहु बेटी नहीं बन सकती और एक सास मां नहीं बन सकती।

क्यों नहीं बन सकती आखिर ? 

जब एक लड़की की शादी तय होती है तब ससुराल की तरफ से उसके परिवार को बोला जाता है कि "ये भी हमारी बेटी की तरह है"

और लड़की भी अपनी होने वाली सास और ससुर को अपने मां बाप का दर्जा देेती है। 

 इस सोच के साथ वो उस परिवार में अपनी जगह बनाने की कोशिश में लग जाती है। धीरे धीरे समय बीतता रहता है और एक ना एक दिन किसी बात मै उसे सुनने को मिल ही जाता है कि " तेरी मां ने नहीं सिखाया क्या" 

मां को कैसे पता होगा कि जिस घर में लड़की जाएगी उस घर के कायदे कानून अलग होंगे ? 
उस घर की परंपरा हमारे घर से कुछ अलग होगी ?
मां कैसे जानेगी की जिस घर में लड़की जाएगी उस घर में खाने का स्वाद हट के होगा काम करने के तरीके अलग होंगे ? 

 हम अपने ही पड़ोस में जाएंगे तो पड़ोस के घर में ही तौर तरीके परंपरा अलग मिलेगी।

हर घर में कुछ अलग होता है । कहीं भी एक जैसा नहीं होता ।

और जिस दिन ये अलग शब्द आ जाता  है उस दिन ये सुनने को मिल जाता है कि " मां ने नहीं सिखाया क्या?"

और जिस दिन बहु ये सुन लेती है उस दिन वो एक  मां और सास में फर्क समझ लेती है

मां के घर में ऐसा कभी नहीं बोला जाता है जो काम नहीं आता वो मां समझा के प्यार से सिखाती है ना कि ताने मारती है

और उसी दिन से बहु एक बहु की तरह रहने लगती है और सास को अपनी सास की तरह लेने लगती है। 

जिस तरह ताली एक हाथ से नहीं बजती उसी तरह बहु का सास को मां मानना और सास का बहु को बेटी मानना एक तरफ से नहीं होता सकता

 ये जरूरी  है के सास बहू को बेटी समझे अगर उसे कोई तौर तरीका या कोई काम नहीं आता वो उसे प्यार से समझाएं.. ताने मारने की जगह

और बहु भी उनकी हर डांट पर गुस्सा करने करने की वजह उस डांट की वजह को समझे उसे सुधार  और उनका वैसे ही आदर सम्मान और ख्याल रखे जैसे अपनी मां का रखती है....

जिस घर में ऐसा होता है उस घर में बहु बेटी और सास मां की तरह होती हैं और सब कुछ कुशल मंगल रहता है ☺️

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