बचपन वाली दिवाली

दीवाली तो बचपन में होती थी 
एक हाथ में पटाखे और दूसरे में मिठाई होती थी
चारों तरफ रोशनी से जगमगाते दिए
और आसमान में मानो जैसे तारों की बरसात होती थी

नए कपड़े पहन घर के बाहर जाते थे
और सब से मिलकर खुशियां बांटते थे
सुबह से ही रात का इंतजार करके
पटाखों को फोड़ने के लिए उत्सुक रहते थे

अब तो सब बदल गया है
त्योहार का मजा भी कुछ कम हो गया है
जिम्मेदारियों में उलझ गए हैं
और मिठाई का स्वाद भी कुछ फीका हो गया है

जो पहले हुआ करती थी
अपनों से मिलकर अब कहां वह खुशी होती है
पहले जहां खुशियों की बातें होती थी
अब वहां परेशानियों की गुत्थी होती है

जहां पहले साथ मिलकर दिए जलाते थे
वहां अब साथ मिलकर अंदर ही अंदर खुद में जलते हैं
चेहरे पर तो मुस्कान रहती है
और मन में तरह-तरह के ख्याल पलते हैं

त्योहार का तो मिजाज ही बदल गया है
खुशियां तो ऐसे हवा हुई है जैसे
चांद निकलता नहीं और
सूरज भी ढल गया है

चलो मिल कर दिवाली को रंगीन बनाते हैं
जहां कुछ कमी है वहां उस कमी को पूरा करते हैं
त्योहार ही तो ऐसा मौका होता है
जहां हम नाराज बैठे अपनों से भी मिलते हैं











1 Comments:

Anonymous said...

Very nice. Bachpan ki yaad aa gae

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