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कभी सास तो कभी बीवी बन
हर मोड़ पर परिवार का साथ निभाती है
पर खुद के लिए क्या करना है
ये भूल जाति है
इतना आसान नहीं होता इन रिश्तों को निभाना
फिर भी ताने सुन सुन कर हर रिश्ते को निभाती है
खुद की जिम्मेदारियों में इतना उलझ जाती है
सबकी खुशियों का ध्यान रखते रखते की
खुद को किस चीज में खुशी मिलती है
इस बात को भी भूल जाति है
मजबूरी कहो या आदत
ख्वाहिश बोलो या चाहत
दूसरों की खुशी में खुश रहना
बस इसी को अपना लेती है
जब सब्र का बांध टूटता है
तो खुशियों से दूर जा कर
अकेले में आंसू बहा लेती है
कद्र करना इन आंशुओं की
क्यूंकि जो औरतों को प्यार और सम्मान देता है
उसकी जिंदगी बन जाति है
दिल में उतरोगे तो प्यार के गहरे समुद्र में डुबा देगी
लेकिन अगर उसके साथ कुछ अन्याय करोगे
तो काली मां बन कर तुम्हारा संहार भी कर देगी
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