और बाद में
पति के नाम से जानी जाती है
एक लड़की कितना भी कुछ क्यों न कर ले
अपने नाम से जानी जाए ऐसा नसीब कभी
न बना पाती है
शादी के बाद भी
गले में मंगलसूत्र की डोर
मांग में सिंदूर का रंग सजाती है
शादीशुदा है वो चीख चीख के ज़माने को
सिर्फ अकेले वही बताती है
पैदा करने का दर्द बच्चे को
अकेले वही उठाती है
लेकिन चाह कर भी
उसको अपना नाम कभी न दे पाती है
मर्दों की लड़ाई में भी
बार बार उसी की
इज्जत उछाली जाति है
मजबूर वो इतनी की
कुछ भी न कर पाती है
संसार में सबसे ज्यादा
महत्व भी उसका
और पूजी भी वही जाति है
फिर भी कदम बड़ाने से पहले उसको
सबकी अनुमति लेनी पड़ जाती है
इस दुनिया की रीत
हर तरफ से
एक औरत के बाजूद को
मिटाती हैं
अपने ही नाम से जानी जाए
ऐसा चाह कर भी
कभी न वो कर पाती है
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