बचपन के दिन भी क्या दिन होते थे..

बचपन के दिन भी क्या दिन होते थे
 मन में हल चल और दिल नादान होते थे
 एक रुपए पा कर 
खुशी से झूमते थे
कल क्या करना है
इस बात से अनजान होते थे

सुंदर सी गुड़िया या फिर
रिमोट वाली कार 
बस इसी को पाने के
दिन रात सपने बुनते थे 
और भविष्य की चिंताओ से
परे होते थे

किसी से भी ऊट पटांग 
सवाल पूछते थे 
और कब क्या करना है 
ये भी नहीं जानते थे

अकेलेपन से अनजान होते थे
क्योंकि उस वक्त
बहुत सारे दोस्त होते थे
और सब मिल कर खुशी से खेलते थे

स्कूल जाने से डरते थे
पड़ने लिखने से दूर भागते थे
पढ़ाई तो कम करते थे
पर किताबों से भरे , भारी भारी बस्ते होते थे

जल्दी से बड़े होने की चाह और 
आंखों में बड़े बड़े सपने होते थे 
जब बड़े हुए तो जिंदगी के नखरे समझ में आए 
और अब आलम ऐसा है की तरसते है उस नींद को 
जैसे हम बचपन में सोते थे 

अब तो बस जब भी मिलते है 
उन दोस्तों से तब महफिल सजती है 
और सिर्फ एक ही बात होती है 
यार वो "बचपन के दिन भी क्या दिन होते थे"


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