बेगैरत जिंदगी

जब बच्चा पैदा होता है 
तो मुट्ठी बंद किए खुशियों को लाता है
और जाते समय 
हाथों को खोल सब कुछ वही छोड़ जाता है 

जब आता है दावतें तब भी होती है
जब जाता है तो भोज तब भी होता है 
बस फर्क सिर्फ इतना है कि 
खुशियों का पल्ल्हड़ा पलट जाता है

सच्चाई यही है की 
इस दुनिया में जो भी आता है
वो एक दिन चला जाता है
समय तो चलता रहता है 
फिर भी सब कुछ रुक जाता है

जिंदा रहते है तो कड़वाहट से जीते है 
दिल में खोट रखते हैं
और जाने के बाद 
उसके लिए हर शब्द शहद में घुल जाता है
 
क्या फायदा ऐसी इज्जत का
जो किसी के जाने के बाद दी जाती है
जिंदा होते है तो 
बेइज्जती के लिए बिना ढूंढे ही 
मौका मिल जाता है

इंसान हो तो इंसान का सोचो 
किसी और का करोगे तो याद करेंगे सब
वरना जाने के बाद तो सब
खाक में मिल ही जाता है 

शरीर तो मिट्टी का है 
सजा लो कितना भी ,ढक लो कितना भी 
लेकिन एक दिन दुनिया के सामने
सब कुछ आ ही जाता है 

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