वो मर्द है

वो मर्द है 
उसको कोई नहीं समझ पाता है
दिन रात मेहनत करता है
जिससे उसके अपने चैन से सो सके
क्या वो चैन से सोया?
ये कोई नहीं जान पाता है

वो मर्द है जो
अपने ही गमों को पीता है
अपने ही आंसुओं को छुपाता है
कोई कुछ बोल ना दे
इसी डर से अंदर ही अंदर  घुटता रह जाता है

वो मर्द है 
इसलिए रो नही सकता
क्या उसे दर्द नहीं होता।?
क्या उसका दिल नहीं रोता ? 
होता तो सब कुछ है 
बस वो किसी से कह नहीं पाता है

वो मर्द है
वो औरत के सामने झुक नहीं सकता
बस इसी बहकावे में
ज़माने के सामने खुल के
अपने प्यार को दिखा नहीं पाता है

वो मर्द है तूफान में भी खड़ा रहता है
हर तरह की आंधी को सहता है
जिससे मेहफूज रहे उसके अपने
बयां नहीं करता पर हां 
वो भी कमजोर पड़ता है

 वो मर्द है 
जो अपनों के लिए किसी भी हद्द तक चला जाता है







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