पर देश की बेटी अभी भी गुलाम है
घरों तक सपने सिमट के रह जाते है
ये आज भी बहुत आम है
हर लड़की खुले आसमान में
पंख फैलाना चाहती है
"चार लोग क्या कहेंगे"
बस ये सोच के रह जाती है
मां चाहती ये करे वो
पापा चाहते कुछ और
भाई को उम्मीद दूसरी
पर ये कोई ना जाने ख्वाहिश क्या है उसकी
हर कोई उसको अपनी नज़रों से तौलता
वो बड़ी मजबूर है
बेटी को लेकर
ये जमाना बड़ा ही क्रूर है
रास्तों पर आज भी
आजाद घूम ना पाए नारी
क्युकी ये कोई ना जाने
किस भेष में छुपा है
बलात्कारी
खुल कर अपने सपने जीना चाहती है
आज़ादी की रोटी का
थोड़ा टुकड़ा ही चाहती है
पर बदनामी के डर से
खुद में सिमट के रह जाती है
वो तो ऊंचा उड़ कर
आसमन पर लिखना चाहती
अपना नाम है
लेकिन जमाना लगाता
उसके सपनों पर लगाम है
क्यूंकि देश तो आजाद है
पर देश की बेटी अभी भी गुलाम है
0 Comments:
Post a Comment