जीवन के झमेले भी कुछ
गोल मोल है
कैसे कैसे बिताई अब तक की जिंदगानी
आओ इसकी खोलते असल पोल है
दुनिया में जैसे ही कदम रखा
तब डॉक्टर ने पीछे
थप्पड़ मार के रुला दिया
बाद में पापा ने बड़े प्यार से
गोद में उठा के झूला झुला दिया
बुजुर्गों की "अल्ले मेरा बाबू" सुन कर
बीता दिया अपना छूटकपन
हमारी तो उमर तब जीरो थी
और उनकी थी पचपन
कुछ समझ नहीं आता था
बस बात बात पर रोना
या सबका सुन कर
मुस्कुराना आता था
फिर कुछ हम बड़े हुए
तब स्कूल हमको जाना था
वहां ना जाने के १०० बहाने बोले
फिर भी घर वालों ने कहां माना था
अजनबियों के बीच हमने
शुरू की अपनी पढ़ाई
पर अजनबी कब अपने लगने लगेंगे
ये हमने तब कहां जाना था
जैसे जैसे हम बड़े हुए
पढ़ाई का तनाव आने लगा
किताबों में घिर के हम भूल गए की
खेल कूद का समय अब जाने लगा
जब पास किया हमने बारह
स्कूल के दोस्तों से बिछड़ने का गम
कुछ ज्यादा ही सताने लगा
अब आया सबसे कठिन समय
भविष्य की चिंता होने लगी
करना क्या है आगे हमको
और घड़ी की सुई भी तेज भागने लगी
तय किया हमने एक लक्ष्य
लग गए उसको पाने में
और समझ लिया कि
वक़्त लगेगा परिश्रम के इस
दौर को जाने में
मेहनत और लगन की डोर पकड़
पा लिया हमने अपना लक्ष्य
अब जिम्मेदारियों को कंधों पर लेकर
जीवन आगे बढ़ाना था
वक़्त आ गया शादी का
और जीवन साथी चुनना था
घर वालों के सहयोग से
जीवन साथी भी चुन लिया
और खुशी खुशी शादी का लड्डू
मुंह में अपने ले लिया
बन गए माता पिता
अब बच्चों की चिंता सताने लगी
भविष्य सुरक्षित रहे उनका
इस ओर मेहनत कदम बढ़ाने लगी
और एक बार फिर घड़ी की सुई भागने लगी
परिवार को संभालते संभालते ज़िन्दगी बीतने लगी
अब वापस लौट के आ गया वो दौर
अब हमारी उमर भी हो गई पचपन
हम भी अल्ले मेरा बाबू बोल के
बिताने लगे नाती पोतों का बचपन
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