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जिंदगी को वह अपनी नजरों से देखती थी
खुद को बहुत महान समझती थी
हर कोई उसके लिए है
पागल थी वह बहुत गलत सोचती थी
अपने गुरुर में चूर थी वो
खुद को ही चांद का नूर मानती वो
हर किसी से भिड़ती थी
हर कही वो लड़ती थी
हर बात को संभाल लेगी
ना जाने खुद को इतना क्या समझती थी
लेकिन गलत थी वो
असल जिंदगी में कुछ भी ना थी
झूठ की जिंदगी जीती थी
अपनी ही असलियत से बहुत दूर थी
दिल से तो साफ थी
बस जुबान से ही गंदी थी
सब कुछ बिगड़ती चली थी
बहते पानी को रोकने चली थी
सही किया है उसने सब कुछ
और बढ़ाया अपना मान है
अपने सपने को पा कर
बन गई वो खुद की ही शान है
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