रात के अनकहे अल्फाज

रात के अंधेरों में ख्वाब बुन रही हूं मैं

आंखे है खुली और सपने देख रही हूं मैं
बांहे खोले खड़ी हूं रास्ते में
क्योंकि किसी बड़ी खुशी का इंतजार कर रही हूं मैं

अंधेरा और भी घना हो रहा है 
कोहरा और भी बड़ रहा है 
बदलो की काली घटा छाई है 
और चांद को ढूंढ रही हूं मैं

बस आंखें खोले सोचा ही था
और पलकों में उम्मीद भर आई है
रात अभी पूरी बाकी है 
और सूरज का इंतजार कर रही हूं मैं

सब कुछ है पर फिर भी कुछ तो कमी है 
बस इसी को पूरा करने का सोच रही हूं मैं
हाथ खाली है मंजिल का पता नही 
और पता नही किस तरफ जा रही हु मै

जिंदगी जैसे फूलों का गुलदस्ता भी है 
उसमे खुशियों की महक भी है 
फिर भी न जाने इन फूलों से
क्या चाह रही हूं मैं....


0 Comments:

My Instagram