आओ तुम्हे कुछ बताते है
दिल खोल कर आज कुछ कहते है
हां तो सुनो बात कुछ ऐसी है
दुनिया की उल्झनों में उलझे है पर
फिर भी तुम्हारे साथ चलना चाहते है
नियति तो यही है की साथ नही है
तुम कहां और मैं कहां हमारा कोई मेल नहीं है
फिर भी दिल का रिश्ता जुड़ा है ख्वाबों में जीने के लिए
क्युकी असल में तो कोई उम्मीद ही नहीं है
कुछ पल का साथ है फिर लंबी दूरी होगी
न जाने हमारी कोई ख्वाहिश कब पूरी होगी?
मैं नही साथ पर मेरी यादे होंगी
होठों पर लाख मुस्कान सही पर आंखे तुम्हारे लिए नम ही होंगी
याद आते हो जब जब अपना नाम पड़ते है
मेरा नाम भी तुम्हारे नाम से जुड़ा है ,काश वो सांसे भी जोड़ देता
जिस हिसाब से हम आपस में रहते है
वैसे ही काश वो हमको भी वैसे ही एक कर देता 🫰
तुम को देखना
तुम्हारी बातों में खोना
हाथ थाम के बैठे रहना
बस यूं ही... अच्छा लगता है
सब कुछ सही है
सब सलीके से है
फिर भी बहाने से तुम्हारे बालों को ठीक करना
बस यूं ही ..... अच्छा लगता है
उल्टे सीधे मजाक करना
तुम्हे हंसाने का बहाना ढूंढना
तुम्हे मुस्कुराते देखना
बस यूं ही ..... अच्छा लगता है
जब कहते हो सिर्फ 2 ही रोटी खओगे
कही थोड़ी भी भूख बाकी न रह जाए
इस लिए 4 रोटी के बराबर 2 रोटी बनाना
बस यूं ही .... अच्छा लगता है
तुमको परेशान करना
जानते है नही पसंद तुम्हे... फोटोज लेना सबके सामने
लेकिन मुझे सबको दिखाना की हां ये मेरा है
बस यूं ही...अच्छा लगता है
कर लेते है रास्ता पार
फिर भी डर से
तुम्हारा हाथ पकड़ के रास्ता पार करना
बस यूं ही .... अच्छा लगता है
कितना लिखूं और कहां तक लिखूं
शब्द कम पड़ जायेंगे
क्यूंकि बहुत कुछ ऐसा है जो
बस यूं ही .... अच्छा लगता है
रात के अंधेरों में ख्वाब बुन रही हूं मैं
आंखे है खुली और सपने देख रही हूं मैं
बांहे खोले खड़ी हूं रास्ते में
क्योंकि किसी बड़ी खुशी का इंतजार कर रही हूं मैं
अंधेरा और भी घना हो रहा है
कोहरा और भी बड़ रहा है
बदलो की काली घटा छाई है
और चांद को ढूंढ रही हूं मैं
बस आंखें खोले सोचा ही था
और पलकों में उम्मीद भर आई है
रात अभी पूरी बाकी है
और सूरज का इंतजार कर रही हूं मैं
सब कुछ है पर फिर भी कुछ तो कमी है
बस इसी को पूरा करने का सोच रही हूं मैं
हाथ खाली है मंजिल का पता नही
और पता नही किस तरफ जा रही हु मै
जिंदगी जैसे फूलों का गुलदस्ता भी है
उसमे खुशियों की महक भी है
फिर भी न जाने इन फूलों से
क्या चाह रही हूं मैं....
दिल की गहराइयों में ढूंढ रही हूं कुछ
मन को शांत कर के
मिल जाए सुकून शायद
इसलिए मैं खामोश हूं
कहना बहुत है
पर पता नही किस बात का डर है
शायद समझ जाए कोई खामोशी
इसलिए मैं खामोश हूं
लफ्ज़ हो गए हैं गुम
और आंखों में पानी है
छलक न जाएं कही ये आसूं
इसलिए मैं खामोश हूं
सुकून की तलाश में बहुत दूर निकल आई हूं
रास्ता भी गया है खो
कुछ कर पाना भी मुस्किल है
इसलिए मैं खामोश हूं
मत पूछो हालातों को
बदल गया है सब
बोलने से होगा नही कुछ
इसलिए मैं खामोश हूं
संभाला है खुद को
बड़ी मुश्किल से
टूट न जाए ये सब्र का बांध
इसलिए मैं खामोश हूं
कृष्णा
राधा के प्रेमी भी है
तो रुक्मणि के प्राणाधार भी है
सुदामा के मित्र भी है
तो पार्थ के सखा भी है
वो यशोदा के लाल भी है
और देवकी के नंदन भी है
एक हाथ में बांसुरी है
तो एक हाथ में लड्डू भी है
मीरा की भक्ति जिनसे है
वो उद्धव के ईस्ट भी है
गोकुल के ग्वाला भी है
और द्वारिका के राजा भी है
गोपियों को छेड़ते वो कृष्ण कन्हैया है
तो श्रीमद भगवद्गीता के रचयिता भी है
वो रणछोड़ है
तो अर्जुन को महाभारत जिताने वाले भी है
कंस के संहारक है
तो सांदीपनी के शिष्य भी है
कर्मों का फल देने वाले भी है
और सबके भाग्य विधाता भी है
कृष्णा कहो या कान्हा कहो
वही हम सबके कर्ता धर्ता भी है
उसके जीने की वजह
सदियों पहले मिट गई
सीने में जो आग थी
वो भी कब की बुझ गई
सपना देखा था छोटा सा कोई
पर अब तो वो उसको भी भूल गई
सब उससे आगे निकल गए
लेकिन वो जहां थी वही की वहीं रह गई
इतना पीछे है की आगे सब सूनसान है
और बिना उम्मीद के वो अकेले चल गई
कहना था ना जाने क्या क्या
लेकिन हालातो के सामने ,वो खामोश हो गई
समय बदला और दुनिया भी बदली
और वो? वो तो जैसे एक ही जगह थम गई
तड़पती है रूह खुद को तराशने को
लेकिन उसकी तो अब सांसे ही जम गई
हार नहीं मानी उसने अभी भी
क्यूंकि....तलाश में है वो एक नई जिंदगी की
पर पुरानी जिंदगी में तो वो कब की मर गई
जिंदगी चलती रहेगी
तुम बस अपने जीने की वजह पकड़ लो
ये वक्त यूं ही निकल जायेगा
तो क्यों न इस वक्त का थोड़ा सा इस्तेमाल कर लो ?
प्रतियोगिता का जमाना है ,जीतना जरूरी है
तुम मेहनत से पढ़ कर अपना मुकाम हासिल कर लो
अभी तक जिया ही कितना है , बहुत जीना बाक़ी है
तो एक लंबी सांस भर लो
कितने लोग आयेंगे कितने लोग जाएंगे
तुम बस अपनों का हाथ पकड़ लो
ज़िंदगी के हर मोड़ मौके के लिए तैयार रहो
तो बस इसी के लिए थोड़ा सा सज लो संवर लो
हर चीज का वक्त आएगा थोड़ा सबर कर लो
अगर थक गए हो बहुत , तो थोड़ा आराम भी कर लो
अरे उनकी बातों का क्या बुरा मानना
जो मां बाप के सगे नहीं
अनसुना बात की कर दो उनकी
क्युकी इस से ज्यादा उनके बस की
कुछ और है भी नहीं
बस में अपने रहते नहीं
दिन रात बस भौंकते है
दूसरों को भला बुरा कह कर
खुद को न जाने क्या समझते है
२ कौड़ी की औकात नही
अपनों से ही बैर रखते हैं
गाली गलौच करा लो बस
बातों से वो दिमागी अपाहिज लगते है
तरस आता है हालत पर उनकी
पर कर भी क्या सकते है
दूर रहो एसो से
ये अपनी झूटी शान के लिए
किसी भी हद्द तक जा सकते है
चारो तरफ मौत तांडव कर रही है
ये कैसा दौर आया है
इस देश पर देखो
ये कैसा कोरोना का संकट आया है
हर तरफ हा हा कार है
शमशान में भी जगह नहीं
और लाशों के ढेर पर
मौज कर रही सरकार है
सबको आत्मनिर्भर बना कर
अब लाशों का ढेर जोड़ रहे है
देश पर इतना संकट है
और बेमतलब मन की बात कर रहे है
ऑक्सीजन की कमी है इतनी
की हर कोई लाचार है
देखो जा के अस्पतालों में
पलंग के लिए हो रही कितनी मारा मार है
हर चीज की कमी है इतनी
बड़ा ही खौफनाफ ये मंजर है
बचाने बाला ही मर रहा है
खाली हाथ डॉक्टर भी अब
इलाज करने में देखो कितना डर रहा है
फिर भी दूसरो को वो बचा रहा है
जान अपनी भुला कर
वक्त है अभी भी साथ दे दो उसका
सब अपना अपना मास्क लगा कर
हमको ही अब संभालना होगा
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर लो
बेमतलब घर से बाहर भी न निकलो
हमारी सुरक्षा हाथ है हमारे
आखिरकार और कब तक बैठोगे इस निकम्मी सरकार के सहारे ?
जो सारे गमों को उड़ा ले जायेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और वो दामन में खुशियां भर जाएगा
सांसे धीमी पड़ जाएंगी
यकीं भी न आयेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और गमों का दिन ढल जायेगा
एक नया सबेरा होगा
और उम्मीदों का सूरज उग जायेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और सब कुछ बदल जाएगा
अभी रो ले जी भर कर और दिल को कर हल्का
इंतजार कर वो दिन जरूर आयेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और आंसुओं का बादल हट जायेगा
जीना है तो दुख भी होगा
बस तू सब्र का हांथ थाम बढ़ते रह
जब जीवन में मोड़ आयेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और खुशियों का रास्ता मिल जाएगा
हर दिन एक सा नहीं होता
हर रात एक सी नही होती
जब ये समझ आयेगा
तब तुम देखते रह जाओगे
और जीवन बदल जाएगा
जब बच्चा पैदा होता है
तो मुट्ठी बंद किए खुशियों को लाता है
और जाते समय
हाथों को खोल सब कुछ वही छोड़ जाता है
जब आता है दावतें तब भी होती है
जब जाता है तो भोज तब भी होता है
बस फर्क सिर्फ इतना है कि
खुशियों का पल्ल्हड़ा पलट जाता है
सच्चाई यही है की
इस दुनिया में जो भी आता है
वो एक दिन चला जाता है
समय तो चलता रहता है
फिर भी सब कुछ रुक जाता है
जिंदा रहते है तो कड़वाहट से जीते है
दिल में खोट रखते हैं
और जाने के बाद
उसके लिए हर शब्द शहद में घुल जाता है
क्या फायदा ऐसी इज्जत का
जो किसी के जाने के बाद दी जाती है
जिंदा होते है तो
बेइज्जती के लिए बिना ढूंढे ही
मौका मिल जाता है
इंसान हो तो इंसान का सोचो
किसी और का करोगे तो याद करेंगे सब
वरना जाने के बाद तो सब
खाक में मिल ही जाता है
शरीर तो मिट्टी का है
सजा लो कितना भी ,ढक लो कितना भी
लेकिन एक दिन दुनिया के सामने
सब कुछ आ ही जाता है